पूंजीपतियों और सांप्रदायिक ताकतों द्वारा देश पर थोपी जा रही तबाही
- ryahqofficial
- Dec 9, 2024
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Updated: Dec 31, 2024

बेगूसराय (बिहार) - इंकलाबी नौजवान सभा (आरवाईए) ने बेगूसराय के हरदिया में वर्तमान राजनीतिक परिस्थितियों में नौजवानों की भूमिका विषय पर एक महत्वपूर्ण सेमिनार का आयोजन किया। इस मंच पर केंद्र और राज्य सरकार की युवा-विरोधी, जन-विरोधी और पूंजीवादी नीतियों का गहन विश्लेषण और तीखी आलोचना हुई। कार्यक्रम में आरवाईए के राष्ट्रीय महासचिव नीरज कुमार ने मुख्य वक्ता के रूप में पूंजीवाद और सांप्रदायिकता के खतरनाक गठजोड़ को उजागर किया।
नीरज कुमार ने कहा, मोदी सरकार की नीतियां देश के युवाओं, मजदूरों और किसानों को पूरी तरह से हाशिए पर धकेल रही हैं। सार्वजनिक संसाधनों और संस्थानों का निजीकरण अडानी अंबानी जैसे पूंजीपतियों की तिजोरी भरने का षड्यंत्र है। बंद हो रहे कल-कारखाने, बढ़ती बेरोजगारी और महंगाई के बीच यह सरकार कॉरपोरेट घरानों के हितों को प्राथमिकता दे रही है। 'सबका साथ, सबका विकास' जैसे नारे सिर्फ छलावा हैं। हकीकत यह है कि यह सरकार सांप्रदायिकता और पूंजीवाद के गठजोड़ के सहारे देश की आर्थिक और सामाजिक संरचना को कमजोर कर रही है।
उन्होंने निजीकरण को आर्थिक लूट का संगठित षड्यंत्र बताते हुए कहा कि बंद पड़े सार्वजनिक उपक्रम और संस्थान, जो लाखों लोगों के रोजगार का आधार थे, अब सस्ते दामों पर कॉरपोरेट घरानों को सौंपे जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि यह केवल आर्थिक नीतियों का सवाल नहीं है, बल्कि सरकार की 'कॉरपोरेटपरस्ती' और युवा विरोधी मानसिकता का खुला प्रमाण है।
जो सरकार रोजगार देने के बजाय युवाओं को सांप्रदायिक नफरत और धार्मिक उन्माद में फंसा रही है, वह असल में सामाजिक न्याय, समानता और लोकतंत्र के मूल्यों पर हमला कर रही है। यह सरकार चाहती है कि युवा सवाल न करें, बल्कि एक अंधभक्त की भूमिका निभाएं।

भाजपा-आरएसएस की राजनीति का एकमात्र उद्देश्य सत्ता बनाए रखना है, और इसके लिए वे समाज को विभाजित करने का खेल खेल रहे हैं। युवाओं के हाथों में किताबों, कलम और काम की जगह तलवारें थमाई जा रही हैं। मस्जिदों और मुसलमान बस्तियों को निशाना बनाकर नफरत फैलाने का अभियान चलाया जा रहा है।
सांप्रदायिकता को बढ़ावा देने के लिए धर्म और इतिहास को हथियार बनाया जा रहा है। उन्हें बताया जा रहा है कि उनका असली दुश्मन वह व्यक्ति है जो दूसरे धर्म को मानता है। जबकि असली दुश्मन बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, और कमजोर शिक्षा और स्वास्थ्य प्रणाली है।
इस राजनीति के गंभीर परिणाम हो रहे हैं। समाज में हिंसा बढ़ रही है, समुदायों के बीच दरार गहरी हो रही है, और सबसे बड़ी बात यह कि युवा अपनी ऊर्जा और संभावनाओं को नफरत के रास्ते में बर्बाद कर रहे हैं। सांप्रदायिक हिंसा में शामिल होने वाले अधिकतर युवा बेरोजगार होते हैं। उन्हें रोजगार न देकर नफरत के हथियार में बदला जा रहा है। हमें संगठित होकर इस षड्यंत्र को बेनकाब करना होगा।

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