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69000 शिक्षक भर्ती में 5000 करोड़ का आरक्षण घोटाला: जिम्मेदार योगी सरकार को बर्खास्त करे मोदी सरकार


हाल ही में बांग्लादेश के शासक को छात्रों-नौजवानों के गुस्से का सामना करना पड़ा। देखते-देखते यह गुस्सा आंदोलन में तब्दील हो गया, जिसे सरकार ने बेरहमी से दमन करके खत्म करने की दिशा ली और वहां पर खुद प्रधानमंत्री को देश छोड़कर भागना पड़ा। नौजवानों का यह गुस्सा दुनिया के अलग-अलग देशों और भारत में भी दिखाई दे रहा है। इसी तरह का बड़ा मामला उत्तर प्रदेश में भी शिक्षक भर्ती में आरक्षण घोटाला हुआ है। अगर केंद्र और उत्तर प्रदेश के अंदर भाजपा की सरकार नहीं होती तो इतने बड़े आरक्षण घोटाले के बाद सरकार को बर्खास्त कर दिया गया होता। आईए जानते हैं क्या है पूरा मामला।
पूरे देश की तरह उत्तर प्रदेश में भी अध्यापकों की कमी को पूरा करने के लिए बहुत ही कम वेतनमान पर शिक्षामित्र की नियुक्ति की गई जिसको बाद में अखिलेश सरकार ने समायोजित कर दिया और उनका वेतन शिक्षकों के बराबर कर दिया इसके लिए शिक्षामित्र ने लगातार अनवरत आंदोलन चलाया था। अखिलेश सरकार 1.72 लाख शिक्षामित्र को सहायक शिक्षक के रूप में समायोजित कर दिया गया था, जिसे हाईकोर्ट ने रद्द कर दिया था। साथ ही हाईकोर्ट ने नए सिरे से सहायक शिक्षकों की भर्ती का आदेश दिया था। फिर यूपी की योगी सरकार ने सबसे पहले 68,500 सहायक शिक्षकों की भर्ती की। यह भर्ती भी सवालों के घेरे में आई। इस भर्ती में पासिंग मार्क को लेकर बड़ा विवाद रहा और अंततः लगभग 22000 सीट खाली रह गई।


68,500 सहायक शिक्षकों की भर्ती के बाद यूपी सरकार ने 69,000 सहायक शिक्षकों की भर्ती के लिए दिसंबर, 2018 में विज्ञापन निकाला। जनवरी, 2019 में परीक्षा हुई। इस भर्ती में 04 लाख 10 हजार अभ्यर्थियों ने हिस्सा लिया। इस भर्ती परीक्षा के तुरंत बाद पेपर लीक को लेकर जबरदस्त आरोप लगे। पेपर लीक कराने वाले गिरोहों को पकड़ा गया और वे जेल में रहे लेकिन सरकार ने इस आरोप को पूरी तरह से नकार दिया और पूरे मामले की लीपापोती कर दी जबकि अभ्यर्थियों ने पेपरलीक के खिलाफ अनवरत आंदोलन चलाया था। इसके बाद मई 2020 को परीक्षा परिणाम जारी हुआ। 01 लाख 40 हजार अभ्यर्थी सफल हुए। इसके बाद सरकार ने मेरिट लिस्ट निकाली। जिसमें जनरल अभ्यर्थियों की अंतिम कटऑफ 67.11, ओबीसी वर्ग की कटऑफ 66.73, अनुसूचित जाति वर्ग की कटऑफ 61.01 और अनुसूचित जनजाति वर्ग के अभ्यर्थियों की कटऑफ 56.09 तक गई। जनरल और OBC की कटऑफ में सिर्फ 0.38 अंक का अंतर रहा। राज्य स्तर पर चयन सूची बनाने के बजाय जिला स्तर पर चयन सूची बनाने के चलते आरक्षित वर्ग का नुकसान हुआ। अभ्यर्थियों ने आरोप लगाया कि 18,988 पदों पर आरक्षण घोटाला हुआ है। ओबीसी वर्ग को 27 फीसदी की जगह सिर्फ 3.86 फीसदी आरक्षण मिला। अनुसूचित जाति (एससी) वर्ग को 21 फीसदी की जगह 16.2 फीसदी आरक्षण मिला। जबकि अनुसूचित जनजाति की पूरी सीट नहीं भरी जा सकी क्योंकि योग्य अभ्यर्थियों के चयन के नाम पर पासिंग मार्क 60/ 65 प्रतिशत परीक्षा के बाद लागू कर दिया गया, इसको लेकर भी हंगामा हुआ। सरकार ने आरक्षण घोटाले से इनकार कर दिया। जबकि राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग ने भी 2021 में ही माना था कि 69000 सहायक अध्यापक भर्ती में आरक्षण अधिनियम का पालन नहीं हुआ। लेकिन सरकार ने आयोग के आदेश को भी नहीं माना। पिछले विधानसभा के चुनाव में अभ्यर्थियों के दबाव में सरकार ने आनन-फानन में आरक्षण का घोटाला मानते हुए 6800 अभ्यर्थियों का चयन लिस्ट जारी कर दी, जिससे जारी आंदोलन छत्म हो गया. जिसको बाद में कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया।

उसके बाद अभी 16 अगस्त 2024 को इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ की डबल बेंच ने बेसिक शिक्षा विभाग को 69,000 सहायक शिक्षक भर्ती की 3 महीने में नई चयन सूची जारी करने का आदेश दिया। डबल बेंच ने आरक्षण नियमावली 1994 की धारा 3 (6) और बेसिक शिक्षा नियमावली 1981 का पालन करने का सरकार को आदेश दिया है। सामान्य सीट पर अगर आरक्षित वर्ग का मेरीटोरियस कैंडिडेट सामान्य वर्ग के बराबर अंक पाता है, तो उसको सामान्य वर्ग में रखा जाएगा। बाकी की 27% सीटों को OBC और 21% को SC से भरा जाएगा। कोर्ट ने आदेश दिया कि पुरानी चयन सूची के आधार पर वर्तमान में जो अध्यापक काम कर रहे हैं, वे अध्यापक नई चयन सूची आने के बाद बाहर होंगे। वे वर्तमान शैक्षिक सत्र तक पद पर कार्य करते रहेंगे।


इस दौरान हुए आरक्षण घोटाले में नुकसान का आकलन किया जाए तो यह लगभग 5000 करोड़ रुपए यानि 55000 हजार रुपए प्रतिमाह की दर से लगभग 19000 अभ्यर्थियों को 48 महीने का वेतन, बाकी मानसिक शारीरिक उत्पीड़न की भरपाई कैसे होगी इसका जवाब आपको देना है।
इस परीक्षा को लेकर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री माननीय योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि 69000 शिक्षक भर्ती में ओबीसी और एससी की सीटों के साथ कोई घोटाला नहीं किया गया है। इसी साल संसदीय कार्यमंत्री सुरेश खन्ना ने विधानसभा में कहा था कि 69 हजार शिक्षक भर्ती में 31,228 ओबीसी वर्ग से चयनित हुए हैं। इसमें 12360 आरक्षित पदों और 18598 मेरिट के आधार पर चयनित हुए हैं। जिससे आरक्षित वर्ग की अभ्यर्थी सहमत नहीं है और हाईकोर्ट ने भी कहा कि बड़े स्तर पर सीटों का घोटाला हुआ है।

शिक्षक भर्ती में आरक्षण घोटाले के खिलाफ लगातार आंदोलन का नेतृत्व कर रही मुक्ता कुशवाहा ने बताया कि 69000 शिक्षक भर्ती में आरक्षण को लेकर आज हर तरफ चर्चाएं तेज हो चुकी है। दलित पिछड़े अभ्यर्थियों का हक (नौकरी) सवर्ण अभ्यर्थियों को दे दिये गये।


2020 से ही सड़क से लेकर कोर्ट तक आरक्षण बचाने के लिए संघर्ष किया गया, दलित- पिछड़े अभ्यर्थियों की मेहनत रंग लाई। माननीय हाईकोर्ट की डबल बेंच ने वर्तमान सरकार द्वारा किए गए आरक्षण घोटाले को उजागर कर दिया। अभ्यर्थी इस घोटाले को लेकर बार-बार आवाज उठाते रहे, पर उनको हमेशा किसी पार्टी द्वारा प्रायोजित बता दिया जाता था और आंदोलन को दबाने का भरसक प्रयास किया गया । इसके बावजूद भी 69000 आरक्षण पीड़ित अभ्यर्थियों ने कभी हार नहीं मानी । उन पर कई बार लाठी बरसाई गई , हाथ तोड़े गए, रीढ़ की हड्डी चोटिल की गयी, सर फोड़ दिया गया, उन्हें जाति सूचक गालियाँ दी गयीं, अपशब्द कहे गए। तब भी उन्होंने कभी हार नहीं मानी।

इस महंगाई और बेरोजगारी के जमाने में बेरोजगार होते हुए भी किसी तरह अपने खून पसीने की कमाई को कोर्ट केस लड़ने में लगा दिया और अपने कीमती 4 साल बर्बाद कर दिए। लेकिन सरकार का कभी दिल नहीं पसीजा और उसने हमेशा घोटाले से इंकार किया। पर सच सामने आना ही था। जिस तरह भाजपा सरकार ने पिछड़े वर्ग और दलित वर्ग के हक अधिकार, उनका आरक्षण छीनने की जो नाकामयाब कोशिश है, इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने भाजपा सरकार के जो आरक्षण घोटाले को पकड़ा लिया। आरक्षित वर्ग की लगभग 18988 सीट का जो आरक्षण घोटाला किया गया है वह देश की जनता देख रही है और माननीय हाईकोर्ट ने भी कड़ा आदेश सुनाया है। जो अवैध लोग बाहर निकाले जाएंगे, उनके सापेक्ष OBC और SC के जो लोग कोर्ट में याचीगण है, दोनों को साथ में सुप्रीम कोर्ट से डायरेक्शन लेते हुए एक पॉलिसी बनाते हुए नियुक्त दी जाए। जैसा कि माननीय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा है कि किसी के भी साथ अन्याय नहीं होगा तो जो संघर्ष और कोर्ट की लड़ाई लड़ रहे हैं, उनके साथ भी न्याय होना चाहिए।

क्या छात्रों का भविष्य बर्बाद करने वाले दोषी अधिकारियों व सरकार में बैठे हुक्मरानों पर कार्रवाई होगी? दोषी अधिकारियों पर कार्रवाई होगी? क्या उन पर बुलडोजर चलेगा? क्या उनकी CBI जांच, ED जांच करवाई जाएगी? ऐसे बहुत से सवाल जनता और अभ्यर्थियों के मन में है!

आरक्षण घोटाले के खिलाफ लगातार न्यायालय से लेकर सड़क तक आंदोलन का नेतृत्व कर रहे संगठित मोर्चा के नेता सुशील कश्यप ने बताया कि विवादों से घिरी 69000 शिक्षक भर्ती में जिस प्रकार से दलितों- पिछड़ों -अल्पसंख्यकों के होनहारों का गला घोटा गया यह अपने आप में आजादी के बाद का सबसे बड़ा शिक्षक भर्ती घोटाला है। उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार का चाल-चरित्र-चेहरा, सबका साथ- सबका विकास का नारा झूठा साबित हुआ। जिसकी मोहर संवैधानिक संस्थाओं से लेकर न्यायपालिका तक लगा दी।शिक्षक भर्ती में अंबेडकर- फूले- कर्पूरी ठाकुर के संविधान का माखौल उड़ाया गया और कमजोर तबके के मेधावियों के साथ भेदभाव करके उनको नौकरियों से वंचित करने की एक सोची समझी साजिश के तहत तकरीबन 19000 नियुक्तियों पर सामान्य वर्ग के अभ्यर्थियों का चयन कर लिया गया। हद तो तब हो गई जब उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ की सरकार निष्पक्ष और पारदर्शी भर्ती कराने का दंभ भर रही थी इसी बीच अदालत का पहली बार 13 मार्च 2023 को ऐतिहासिक फैसला आता है और झूठी पारदर्शिता बेनकाब हो जाती है। 69000 शिक्षक भर्ती की पूरी चयन लिस्ट को न्यायपालिका रद्द कर देती है. निर्लज्ज और बेशर्म योगी सरकार एकल पीठ के आदेश को नहीं मानती है और अपनी कमियों को छुपाने के लिए डिवीजन बेंच में स्पेशल अपील में आरक्षित वर्ग की अभ्यर्थियों के खिलाफ बहस करती है और आरक्षण की खिलाफत करती है। मामला कमजोर- शोषित- वंचित- बेबस -लाचार मेधावियों से जुड़े होने के नाते भाजपा सरकार कभी इनकी वकालत नहीं की। सरकार जिस तरह से नौकरियों में अपने लोगों को बैठा रही है। इससे स्पष्ट हो रहा है कि आने वाले समय में सामाजिक परिवर्तन की लड़ाई बहुत ही कमजोर करने और इस देश के नौजवानों को दासता और गुलामी की जंजीरों में जकड़ने की सुनियोजित साजिश चल रही है। इस भर्ती से प्रभावित अभ्यर्थी जब न्याय की गुहार सूबे के मुखिया से कर रहे थे तो कोई भी सर्वमान्य हल नहीं निकाला जाता है।

कोर्ट के आदेश से जब सामान्य वर्ग के अभ्यर्थी प्रभावित होते हैं तो सरकार उनके लिए कोई पॉलिसी बनाने की बात करती है। वहीं वर्ष 2020 से बारिस- सर्दी -गर्मी -कड़ी धूप झेलते हुए आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थी संघर्ष करते हैं तो उनकी पीड़ा सरकार को नहीं दिखाई देती। कितनी शर्म की बात है कि हम अपने ही मुल्क में अपने संवैधानिक अधिकारों को पाने के लिए शांतिपूर्ण संवैधानिक दायरे में रहकर नवाबों के शहर लखनऊ के इको गार्डन में 640 दिनों से अधिक समय तक सरकार को जगाने व मनाने के लिए धरना देना पड़ता है, फिर भी सरकार नहीं सुनती है।

नौजवानों एक हो जाओ, दमनकारी सरकार से आने वाले समय में बदला लिया जाएगा और संविधान बदलने वालों की कुर्सी बदलने का काम किया जाएगा।

सरकार विधानसभा उपचुनाव की तैयारी में जुटी है। इससे पहले ही बेरोजगारी और पेपर लीक होने का मामला चल रहा है। आरक्षित वर्ग के गुस्से का सामना कर रही योगी सरकार को हाईकोर्ट के आदेश से जो शिक्षक नौकरी से बाहर होंगे, उनकी और उनके परिवार वालों की नाराजगी का सामना योगी सरकार के लिए बहुत मुश्किल होगा।

 
 
 

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